द वर्स्ट
द वर्स्ट
मैं बुरा
मेरे कर्म बुरे
मेरा भाग्य बुरा
मेरे जन्म बुरे
बुरा मैं सारा का सारा
ना कुछ होता है
ना करता हूं
जीने से भी अब डरता हूं
सांसे आती जाती है
पल पल घुट-घुट के मरता हूं
कुछ दिया नहीं
ना मिला कभी
बंद होगा ये सिलसिला कभी
भोग ये मेरे कर्मों का
किससे करना फिर गिला कभी
ना नींद रात भर आती है
ना बेचैनी कही जाती है
कब तक यूं ही तड़पूंगा
अब तो रूह भी घबराती है
खत्म करूँ खुद को कैसे
जब बात ज़हन में आती है
बना बहाने ढेरों फिर
मेरी सोच मुझे बहकाती है
मैं कायर हूँ, कायरता भी
अब मुझसे आंख चुराती है
शर्मा कर मुझपर फिर वो
बड़ी मंद मंद मुस्काती है
पर कब तक यूँ ये खेल चलेगा
खत्म तमाशा होना है
जिसको हंसना फिर हंसते रहना
जिसको रोना सो रोना है
बचा नहीं कुछ कहने को
ना कुछ पास मेरे, जो खोना है
कलम वापसी रखता हूं
जो होना है सो होना है
अल्फाजों से बयां किया
वो बोझ जो दिल पर था भरा
हां मैं हूं बुरा, मेरे कर्म बुरे
बुरा मैं सारा का सारा...
