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Krishan Sambharwal

Abstract

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Krishan Sambharwal

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भगवान

भगवान

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प्रकृति कुछ कहना चाहती है...


क्यों डरा और सहमा सा है जब यहां तू महमां सा है।

एक दिन तो जाना ही था फिर तू क्यों यूं वहमा सा है।


बाढ़ भूकंप आंधी तूफ़ान घट रही जो आपदा।

किसको इसका दोष दे या भाग्य में ही है बदा।


वैसे भी ये दृश्य सारे, ना उम्मीदी अंधियारे।

महामारी है बहाना कर्मफल ये है हमारे।


भूमि, गगन, वायु, आग और पांचवा नीर जान।

पहला अक्षर जोड़ कर ही तो बना है भगवान।


करते हम खिलवाड़ थे तो एक दिन ये होना ही था।

पछतावे के रूप में फिर एक दिन तो रोना ही था।


तौबा करके गलतियों से मान ले अब भी खता।

दया-धर्म और प्यार, करूणा सब के प्रति दे जता।


लहलहाती डालियों पर संध्या वंदन के समय।

कोयल करती कुहू कुहू और चिड़िया चहचहाती है।


कलरव कर हर रोज़ यूं ही मनभावन अपने स्वर से।

प्रात: उठाकर ईश के इस गीत को ही गाती है।


महसूस तो कर प्यारे...

प्रकृति कुछ कहना चाहती है.......


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