मज़दूर
मज़दूर
जाने-अनजाने में भी हम सब,
जानें क्यों? है उससे अनजान।
जिसके साहस-श्रम से ही तो,
बढ़ता सदा स्वराष्ट्र का सम्मान।
ग़रीबी और लाचारी में भी देखों,
ढूंढ़ता वह खुशियों का जहान।
नित उसकी मेहनत के बल पर,
निज राष्ट्र बनता जग में महान।
सरदी-गरमी वर्षा में भी करता,
सच में हरदम कितना श्रमदान।
जी ना चुराता परिश्रम से कभी,
रहता है जबतक वह ऊर्जावान।
उम्मीदों के घरौंदा वह सींचता,
निज ज़िम्मेदारी में मग्न रहता है।
मैला-कुचेला पहनकर भी सदैव,
राजसी सुख अनुभूति करता है।
समस्याओं से रहता घिरा हमेशा,
ग़म के अश्रु पीने को वह मजबूर।
मजबूरियों के कारण ही जिसकी,
स्वजनों में होती पहचान मज़दूर।
खेत-खलिहान व कल-कारखाने,
सड़क निर्माण का है जो आधार।
विशाल भवनों की शिल्पकला भी,
बगैर उसकी मेहनत के निराधार।
रहा नहीं श्रमिक समुदाय अगर तो,
यह धरती भी होगी मानों निष्प्राण।
सोचे सरकार इनके हित हरदम तो,
होगा तभी इनका जीवन कल्याण।
