कैसा नववर्ष
कैसा नववर्ष
सोच बहुत मन होता विचलित,
आख़िर मनाते कैसा नववर्ष हैं।
ना कहीं प्रकृति विनिमय फिर भी,
फैला चहुंओर जहाँ अब हर्ष है।...
आहट होगी जब नूतन साल की,
तभी परिवर्तन दिखेगा बेशुमार।
हर्षित होगा जीवजगत मन माहीं,
छा जायेगी उल्लसित भरी ख़ुमार।
अभी दिखता नहीं चहुंओर कहीं,
धरती पर कुदरती कोई बदलाव।
आच्छादित नव पल्लवों से तरु,
होता जीर्ण-शीर्ण पर्ण अलगाव।
सरजमीं पारंपरिक नहीं यह सब,
अतः स्वजनों में आपसी कर्ष है।...
पतझड़ मौसम बीत जाने के बाद,
नव उमंगों संग मधुमास आयेगा।
होकर प्रफुल्लित यह जनमानस,
मिल गीत आह्लादी सब गायेगा।
बासंती रंग में रंगी इस धरती पर,
नव कलियां लेंगी उन्मत्त अंगराई।
आम्रमंजरी पुष्पित वन उपवन में,
मंद बयार संग होगी भ्रमर भौंराई।
बस इन्हीं प्रतिक्षणों की प्रतीक्षा में,
आशान्वित स्नेहिजनों में सहर्ष है।...
