चल मुसाफिर, जब तक दम में है दम
चल मुसाफिर, जब तक दम में है दम
चल मुसाफिर, जब तक दम में है दम
बैठने से मुश्किलें होती नहीं हैं कम
चलते ही रहना है तुझको तो हरदम
चल मुसाफिर, जब तक दम में है दम।
क्या कभी सूरज को बैठे हुए देखा है
क्या चांद को रुकते हुए कभी देखा है
पृथ्वी भी अपनी धुरी पर घूमती रहती है
वायु भी एक पल के लिए कहाँ रुकती है
देख, वक्त का पहिया कहीं जाये ना थम
चल मुसाफिर जब तक दम में है दम।
सफर में जो चला मुकाम उसी ने पाया
आलसी खरगोश क्या कभी जीत पाया
मेहनत से ही मंजिलें मिला करती हैं
परिश्रम करने वालों की ही पूजा होती है
आखिरी सांस तक करते रहना है करम
यही सच है बस, छोड़ दुनिया का भ्रम
क्या पता फिर मिले ना मिले दूसरा जन्म
चल मुसाफिर, जब तक दम में है दम।
