शिवमय
शिवमय
जहरीली शब्दों के बाण
यह सोच सह गई कि
नीलकंठ का अंश हूँ ,
वह यह सोचता रहा ,
कैसे ऐसे-ऐसे
विष बाण सह गई !
फिर उसने मेरे चीर को छुआ
तो मैं
महाभारत का कारण बन गई।
क्यों वह सदा
अहम और वासना में लिप्त रहता ?
क्यों युद्ध और
दूत-क्रीडा से ही सब जीतना चाहता ?
क्यों प्रेम कीबाँसुरी
बजा प्रेममय नहीं होता ?
क्यों धनुर्धर बन
मन के रावण को मार
स्त्री के मन में सम्मान नहीं पाता ?
शायद जानता नहीं
एक ही शिव से प्रकट हुए दो लिंग
बिल्कुल एक समान,
दोनों अपने में पूर्ण
पर सृष्टि के नियमों से बंधे ,
जन्म मृत्यु में फंसे
इस क्रीड़ा-स्थल में क्रीड़ा कर
शिवमय हो जायेंगे।
पर अब क्रीड़ा के नियम भूल गए
इसलिए
प्रेत बन आत्माओं को सताते
और सदा प्रेत बने रह जाते।
सच्चे बंधन समझ ही नहीं पाते
मनु की संतान
शिवमय हो ही नहीं पाते।