दादी माँ
दादी माँ
नींद तो पूरी नहीं हुई थी और
सुबह होना भी बाकी थी,
तेरे हाथों से भी खाना बाकी थी और
तेरे गोद में सर रख के सोना भी,
हाथ पकड़ के चलना सीखना शुरू हुई थी,
ज़िन्दगी की राहो पे दौड़ना सीखना भी बाकी थी,
खूब सारी दिल की बाते सबसे चुपके सिर्फ तुमको बतानी थी,
मुश्किल वक्त में लड़ना और
जिंदगी मैं कैसे जिया जाए वो भी सीखना बाकी थी ,
दुनिया के इस भीड़ मैं कहीं खो ना जाऊं इस डर से लड़ते कैसे
वो सीखना भी बाकी थी,
वक्त से पहले,बहुत कुछ सीखने से पहले मुझे
यहाँ अकेले करके कैसे हाथ छोड़ के चले गए तुम
बहुत याद आती हो तुम प्लीज चले आओ ना मां। आई मिस यू मां...
