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Anamika Sachdeva

Tragedy

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Anamika Sachdeva

Tragedy

औरत की जिंदगी

औरत की जिंदगी

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मजबूरियों का जाल है औरत की जिंदगी

कितना बड़ा सवाल है औरत की जिंदगी

यह बलात्कार तो चांटे की तरह है

सहलाया हुआ गाल है औरत की जिंदगी।


गांव ने अगर रौंदा, तो शहरों में उछाली

सोचा कोई फुटबॉल है उसकी जिंदगी

जो चाहे जिसके सामने परोस दे

सुविधा से बड़ा थाल है औरत की जिंदगी।


भाई के लिए, मां के लिए, बाप के लिए

सिर का सफेद बाल है औरत की जिंदगी

दुनिया को जिसने खुशियां बांटी तमाम उम्र

कांटो भरी वो डाल है औरत की जिंदगी।


चुनर की जगह इसको कफन तो न दीजिए

वैसे ही तंग-हाल है औरत की जिंदगी।


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