लालच
लालच
यह जीवन भी है कैसा
यहां इंसान को चाहिए है हरदम पैसा,
पैसे की खातिर इंसान बन गया हैवान
छोड़ दी लोक लाज, शर्म और बन गया बेईमान,
काले धंधे के बनाए उसने अड्डे
और दुनिया में खड़े किए उसने अपने नाम के झंडे,
पैसे की खातिर इसी पैसे की खातिर
बहू को दिया जला, बेटों को खड़ा किया बाजार,
बेटो की लगाते बोली, बेटों का करते व्यापार
अरे ओ इंसान यह दो दिन जिंदगानी,
सेतु कहता है बेईमानी, किसकी खातिर
मरने पर तेरे कोई न साथ होगा,
दो गज कफन का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।