क्या लिखूँ
क्या लिखूँ
उखड़ा है मन लेखनी का मन में उठ रहा है बवाल
आखिर लिखूँ तो क्या लिखूँ दिल में आते हैं कई खयाल
मैं क्या लिखूँ।
प्रताड़ित होती नारी पर छिड़ा नारी विमर्श लिखूँ
या फिर पीड़ा में देह छोड़ते कृषकों का संघर्ष लिखूँ
मोबाइल के हाथों बच्चों का छिनता बचपन लिखूँ
या फिर सत्ताधीशों को लुभाते भोग छप्पन लिखूँ
जनता की पीठ पर महंगाई के कोड़ों की मार लिखूँ
या जीवन पर मृत्यु सा पड़ा प्रदूषण का भार लिखूँ
पड़ोसी दुश्मन को अपनी चेतावनी का गर्जन लिखूँ
या छंद मुक्तक गीत कविताएँ और भजन लिखूँ
धूम धाम से मनाते होली दिवाली के त्योहार लिखूँ
या सरहद की सलामती में सिपाही के तन का तार-तार लिखूँ!
जहाँ नारी पुजती वहाँ देवता बसते का झूठा आलाप लिखूँ
या बेटी का होना आज भी है अभिशाप लिखूँ
दिल कर रहा बारम्बार सवाल मन में उठ रहा है बवाल
हर कोई यहाँ पर बेहाल हर लफ्ज़ रो रहा आँसू खून के
और पूरा पन्ना हुआ है लाल, और पूरा पन्ना हुआ है लाल।
