ओ माँ
ओ माँ


छल प्रपंच झूठ बेईमानी,
है यह ज़माना दावों का।
माँ का प्यार दावों से रहित है ,
पावन पुंज वह भावों का।
वैद्य हकीम रोग को हटाएं,
कर उपयोग दवाओं का।
माँ तो बिन दवा की वैद्य है,
माँ है झुण्ड दुआओं का।
माँ अलौकिक संगीत है,
प्रभु प्रेम की धुनों का।
उसे है क्या फूलों की ज़रूरत,
माँ खुद गुच्छ प्रसूनों का।
हिंसा धोखा मारा-मारी,
आया अब युग भ्रांति का।
माँ के दर्शन से सुख मिलता,
माँ इक कोना शांति का।
दावानल चहुंओर हैं धधके,
कहीं न दृश्य सरलता का।
माँ के चरणों में सुकून है,
माँ झरना शीतलता का।
कागज़ के हैं फूल ये दुनिया,
प्रकाश झूठे जुगनुओं का।
माँ का उर है सदा महकता,
माँ इक बाग़ खुशबुओं का।
माँ तू तो है वह दाता,
जो भंडार आशीषों का।
जिसकी छाया में है स्वर्ग,
माँ वह आँचल बख्शीशों का।
तेरा रोम रोम ही दुआ है,
प्यारा रूप तू जीवन का।
माँ हम ईश्वर को क्या जानें,
तू ही रूप है भगवन् का।