जन्मदात्री मर्यादा की
जन्मदात्री मर्यादा की
अदृश्य पंखों के दम पर
उम्मीदें रखती हूँ
उन सुनहरे सपनों को देखने की
जिनमें आकृति उकेरी है
मेरे हृदय की कूंची ने
आँखों में झिलमिलाते इन्द्रधनुषी स्वर्णिम रंगों से
सुसज्जित मेरी नन्ही-सी आशाओं की
नारी नहीं नाम लाचारी का
माना कि तुम्हारा पौरुषीय दंभ
चौक उठता है
मेरे तन-मन में इक हल्की-सी हलचल से
क्योंकि तुम अभ्यस्त नहीं न इसके
सदा पाया तुमने मुझे
छुईमुई के पुष्प-सा
कभी माँ में, कभी भगिनी में
या कभी तनया की शक्ल में
किन्तु
न होना चिन्तित
मैं स्वच्छंद उड
़ूंगी ज़रूर मगर
अपने हिस्से के नभ के दायरे में
मर्यादा जानती हूँ अपनी और मानती भी हूँ
और जानूँगी भी क्यूँ न
मर्यादा की जननी तो मैं ही हूँ
मर्यादा पुरुषोत्तम से आभूषित किया प्रभु को
किन्तु मर्यादित होने का प्रमाण
दिया मैंने
तप कर अग्नि में कंचन बनकर
क्यूँ कि मर्यादा का जन्म ही मेरे लिए हुआ है
तुम्हारे लिए तो है सारा आकाश
तुम्हारी पवित्रता को
कभी नहीं परखा मैंने न कभी परखूंगी ही
मैं रखती हूँ अपने हिस्से की सच्चाई
तुम्हें जानते हुए भी......