ममता
ममता
वह छोटी चिड़िया
कर रही थी जतन
एक अर्से से
तृण-तृण लाती
नीड़ बनाती
कभी
तीक्ष्ण झोंंके मलय के
तो कभी
बालक वृंद देते बिखेर
घोंंसले को उसके
तब वह
छोटी चिड़िया
गर्दन को टेेढ़ी कर
चीं-चीं चीं पुकार कर
करती प्रतिवाद
होते ही माहौल के शांत
वह फिर आती
तृण-तृण उठाती
नीड़ बनाती
शनैः-शनैः फिर बढ़ तपिश
लेकिन उसे न उफ
न खलिश
भरी धूप में उड़ कर जात
ी
तृण-तृण लाती
नीड़ बनाती
संतति प्रेम के वशीभूत
भविष्य के स्वप्न संजोए
वह नन्ही मााता
कर रही पूरी शिद्दत के साथ
बारम्बार नीड़ निर्माण
थक गए हम तकते-तकते
किन्तु दायित्व के
बोझ तले ममता की धुन में
करती रही वही
पुनःः पुनः नीड़ निर्माण
न थक कर निढाल हुई ममता
न ही हो रही हताश
यही क्या
संतान के प्रेम में सराबोर
संसार की हर माँ
कर सकती है
एक धरती और आकाश।
एक धरती और आकाश।
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