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Ranjana Mathur

Abstract

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Ranjana Mathur

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ममता

ममता

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वह छोटी चिड़िया

कर रही थी जतन

एक अर्से से

तृण-तृण लाती 

नीड़ बनाती

कभी

तीक्ष्ण झोंंके मलय के

तो कभी

बालक वृंद देते बिखेर

घोंंसले को उसके 

तब वह

छोटी चिड़िया

गर्दन को टेेढ़ी कर

चीं-चीं चीं पुकार कर

करती प्रतिवाद

होते ही माहौल के शांत

वह फिर आती

तृण-तृण उठाती

नीड़ बनाती

शनैः-शनैः फिर बढ़ तपिश 

लेकिन उसे न उफ 

न खलिश

भरी धूप में उड़ कर जात

तृण-तृण लाती 

नीड़ बनाती

संतति प्रेम के वशीभूत

भविष्य के स्वप्न संजोए

वह नन्ही मााता

कर रही पूरी शिद्दत के साथ

बारम्बार नीड़ निर्माण

थक गए हम तकते-तकते

किन्तु दायित्व के

बोझ तले ममता की धुन में

करती रही वही

पुनःः पुनः नीड़ निर्माण

न थक कर निढाल हुई ममता

न ही हो रही हताश

यही क्या 

संतान के प्रेम में सराबोर 

संसार की हर माँ

कर सकती है

एक धरती और आकाश।

एक धरती और आकाश। 


©


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