बस मिला प्रलोभन
बस मिला प्रलोभन
बस मिलता रहा प्रलोभन
सत्तर साल से नहीं बदला,
आम आदमी का जन -जीवन
वही भाग -दौड़ निर्वाहन।
हर काम ज़िन्दगी में विघ्न
बस लगातार पिस रहा है,
बिना ईंधन के तन का इंजन।
कितने चुनाव चले गए,
नेताओं ने दिया बस नसीहत
कितनी सरकारें बदल गयी,
हालात फिर भी फजिहत।
सरकारी दफ्तरों में पंक्तियाँ,
धूप में जलता तन -मन
दूर -दूर तक पानी नहीं,
प्यास से मरता कण -कण।
गिरवी हो गयी पायल,
आधार -लिंक हुए सब गम
नहीं बदलाव परिस्थिति में,
हुआ छरण -भृण ये यापन।
केवल वोट का अधिकार है,
बाकी नहीं कोई दम
मत मायूस होना उड़ता
कभी तो छंटेगा ये तम।