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Omdeep Verma

Tragedy

4  

Omdeep Verma

Tragedy

दर्द

दर्द

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आंसूओं ने जवाब दे दिया 

दर्द मगर कम नहीं हुए 

हंसने की भी कोशिश की मैने 

गम मगर बेदम नहीं हुए 

मेरे अपने ही दर्द दे-देकर

बर्दाश्त की आज़माइश करते रहे 

कुछ तो उनसे भी बेदर्दी निकले 

जो मेरे दर्दों की पैमाइश करते रहे 

मेरी ही सिसकारीयों का शोर 

मुझे कभी सोने नहीं देता 

नाता पुराना है गमों का मुझसे 

जो मुझे खुशीयों का होने नहीं देता 

फरेब लगता है लोगों को

मेरा रातों जाग-जागकर आंहें भरना 

घुटन सी होने लगती है मुझे 

दर्द देने वालों की आए याद अगर ना 

ये दर्द अब जिदंगी बन गए है

घावों को खुरच लेता हूँ ताजा रखने को 

ये सब उन्हीं की दैन है 

जिदंगी माना था जिनको खुशीयां सांझा करने को

मेरी कलम रोने लगती है 

दर्द इन खाली पन्नों का देख नहीं सकती 

मेरा दर्द दे देती है इनको 

मगर खाली 'ओमदीप' बैठ नहीं सकती।। 



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