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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

Tragedy

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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

Tragedy

मजदूर हूँ साहब

मजदूर हूँ साहब

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गरीब मजदूर हूँ साहब

मैं तो गरीब मजदूर हूँ साहब,

धरती को अपना बिछोना बनाकर,

गगन को अपना ओढ़ना बनाकर,

हर दिन अपना एक नया भाग्य लिखकर,

दिन-रात मेहनत करता हूँ ,

जब जाकर पाता हूँ ,

अपने परिवार की दो वक्त की रोटी,

कभी-कभी तो भूखे ही रह कर सो जाता हूँ,

मेहनत ही मेरी पूजा,

मेहनत से कभी पीछे नहीं हटता,

मेहनत से अपना हर अंजाम लिखता हूँ,

मैं तो गरीब-मजदूर हूँ साहब,

रोज एक नई जिंदगी लिखता हूँ साहब !!


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