कभी किसी को चाहा था इस क़दर..
कभी किसी को चाहा था इस क़दर..
कभी किसी को चाहा था इस क़दर..
निगाहें तो मिली लेकिन कभी इज़हार ना कर सका ये अधर ..
क्योंकि उसके खो जाने का था डर ..
बस उसे मुस्कराते रहते देखना.. और कभी ना खत्म होने वाली बातें ...
कितना हसीन था वो पहर..
फिर वक़्त का कारवाँ बदला..आज वो हैं उस शहर मैं हूँ इस शहर
अब कभी फ़ोन करती और पूछती कैसे हो..
मन करता बोल दूँ .. कुछ बचा नहीं.. बस दे दो जहर..

