प्रयास और सफलता
प्रयास और सफलता
अनगिनत असफलता की सोच को
छोड़कर कर आगे बढ़ा चला जाता है।
आज तक भरोसे तो बहुत टूटे मगर भरोसा की
आदत नहीं टूटी की सोच रख फिर से खड़ा हो जाता हूँं।
गिरता हूँ संभलता हूँँ, रात गयी बात गयी को मान के,
नए सवेरे के आस में फिर से उठ जाता हूँ।
और असफल प्रयासों में भी कितने तरीके से और असफल हो सकते हैं
कि सोच की खोज कर, फिर सफलता की खोज में बढ़ा जाता हूँं।
जिंदगी में सांप सीढ़ी का खेल की तरह सफलता के करीब
पहुंचकर किसी बाधा रुपी सर्प से
कटकर फिर से शुरुवात पे आ जाता हूँं।
मगर हमने भी ना छोरी आस रास्ते में मिलने वाली
हर छोटी सीढ़ी से भी आगे बढ़ा चला जाता जाता हूँं।
हमने भी कर ली भीष्म प्रतिज्ञा,
अब कष्टों की बाणों शैय्या में मुस्कराते चला जाता हूँँ।
अरे जो चढ़ता है वही तो गिरता है कवि रूप में,
सदियों से चली आ रही इसी बात को बता जाता हूँँ।
कर लिया लक्ष्य अर्जुन सा अचूक, विषम परिस्थितियां मैं भी
अब जम चुके अंगद पाँव को कहां हिला पाता हूँँ।
जीवन संघर्ष का नाम है, यहीं १४ बरसो के वनवास का संघर्ष,
राजा राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम की
उपाधि दी, यहीं सबको बता जाता हूँ।
