रंगरेज
रंगरेज
मेरे पिया ठहरे बड़े रंगरेज..
आज भी दी थी उसकी गलिओं में दस्तक
क्यों कि बहुत दिनों से गुलाल जो हमने रखे थे सहेज..
फाल्गुनी छठा को देख लगा प्रकृति ने सारे रंग दिए उसपे उढ़ेल.
अब तो बस लगा तमन्ना नहीं रही रंग लगाने की..
मैं तो उसी की रंग में रंग जाऊँ और बन जाऊं उसका तेज!

