राम नाम का आस
राम नाम का आस
विपदा बड़ी आन पड़ी अब प्रलय हरो मेरे राम।
अब इस महामारी मे संसार का कोई कोना न अछूता जिंदगी लग रही कौड़ियों के दाम।।
संसार की भोग विलासता की जुटाई वस्तुएँ अब न आ रही कोई काम।
चिकित्सक , किसान, जवान लग रहे प्रभु के समान।।
अब लग रहा ये अपने कर्मो का ही पाप।
जिंदगी अब कैद बनकर रह गई लगता अब ये मूक जीवों का श्राप।।
प्रकृति की वरदानो का दोहन मैला कर न जाने उजाड़ दिये कितने बाग ।
कभी घना था धुआ कठिन थी सांस अब स्वच्छ हवा मे भी ओढ़े हे नकाब।।
कभी यह सड़के दोड़ा करती न था समय न था परिवार का ख्याल हर पल कर रहा था पैसा का जाप।
अब यही सड़कें गलियां सुनसान घर अब मंदिर लगे माँ बाप के चरणों मे चारो धाम।
अब भी स्वार्थी इंसान मान न रहा लग रहा धर्म आडंबरों का जमात।
लाख समझाने में न समझे अब इन्हे सदवुद्धि दो मेरे राम ।।
अब संकट जैसे हटी करुँगा प्रकृति जीवों से प्यार ।
सौगंध लेके संकल्प लू प्रभु राम का नाम।।
