ए हवा ऐसा क्यों ....
ए हवा ऐसा क्यों ....
जब दसो दिशाएँ चल रही तो हम रुके क्यों है..
जब तेज़ भाग रहे थे..तो अब पैरों में जंजीर डाल छिपे क्यों हैं..
कभी थी आसमान छूने की तलब..अब दूर से दिखता नीला अहँकार क्यों है..
सोचा चलो हवाओं से पूछ लेता हूँ.. कल तक
जो बहती थी साथ उसकी भी चाल अब विपरीत क्यों है..
सवालों को सुनती हवाएँ बदल चुकी थी रूप..
विवेचित आँखों से पूछता इतना तूफ़ान क्यों है..
हे कुल्हाड़ी के जात वाले.. अब मैं भी हो गई बिकाऊ.....
ना पूछना तेरा इतना उधार क्यों है..
आपदा में तू अवसर तलाशता बता
हर जगह संकट में सजा कालाबाज़ार क्यों है..
कभी किसी सिकंदर का टूटा था अभिमान..
तुझे बस दोनों मुठियों में दुनिया जितने का अहँकार क्यों है..
छोड़ जाने दे..बता दे अपनी औकात..
अगर कीमत ना हो तो बोल तुझे जीने का अरमान क्यों है।
