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Sumit Kumar

Abstract

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Sumit Kumar

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कहाँ चली गयी गौरिया

कहाँ चली गयी गौरिया

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बचपन में याद बा आंगना में आवत रहे गौरिया ..

हम बुतरू लोगन के मन बहलावत रहे गौरिया.. 

आजी फिरी बाजरा के दाना लिए इंतज़ार करते बेरा हो गइल ..

हो गइल दुपहरिआ ..फिर भी ना आईल गौरिया ..

अब ना बेठातारे बिजली के तार पे ..ना चुचुआवहत सुनइ ला..

आँगना दुवरिया .. पता ना कहाँ बिला गयिल हमर गौरया 


कही कहीं ढुन्डल ढुन्डल मिलल एक नन्ही गौरया

पूछलनि काहे छोर देला रउआ हमर दुवरिया.. 

कट गईल जंगल हवा में फ़ैल गइल बा जहर.. 

यैह मोबाइल टावर बन गईल हमर लोग पे कहर..

ना बचल गाँव तु बसा लेला शहर ..

सुन ला..न सुधरला ता ना बची

कोई चिरईया एह बोल उड़ गईल उह नन्ही गोरिया!



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