उड़ान की ख्वाहिश
उड़ान की ख्वाहिश
हद से बढ़ी उड़ान की ख्वाहिश
तो यूँ लगा जमीं पैरों से खिसक रही है
आसमान तो मिल गया ख्वाहिशों का
पर जिंदगी सिमट रही है।।
बार-बार मन को हुआ आभास
कि सब कुछ छूटता जा रहा है पीछे
पर मैं बढ़ता रहा अनदेखा अनसुना कर
कि जिंदगी क्या कह रही है।।
कारवां लेकर चला था सफ़र में,
अब तो बस तन्हाई है हमसफ़र
अपनों का साथ एक-एक कर ऐसे छूटा
जैसे मुट्ठी से रेत फिसल रही है।।
मंजिल तो मिल गई खुशियों की
पर खुशी में अपनों का साथ न मिला
अपनों के बिना बर्फ की चट्टान सी है ये खुशी
जो धीरे-धीरे पिघल रही है।।
आसमान छूने के इस जुनून में
नज़र ही ना पड़ी कभी ज़मीं पर
सफलता का शोर सुनाऊं किसे
यहाँ तो बस खामोशी उबल रही है।।
हजारों की भीड़ महफ़िल में
फिर भी कामयाबी के जश्न में हूँ अकेला
सब कुछ पाकर भी कुछ न पाया
मन के अंदर एक जंग सी चल रही है।।
वापस आना चाहता हूँ जमीं पर
कि आसमान अपना सा नहीं लगता
कामयाबी के इस मुकाम पर पहुंच कर
अब जिंदगी क़फ़स लग रही है।।
मेरी जिंदगी की बगिया के फूलों में
खुशियों की कोई खुशबू नहीं
नसीब का खेल तो देखो जब लौटना चाहा
तो ये जिंदगी ही हाथ से निकल रही है।।