अपनापन..!
अपनापन..!
नफ़रतों की जंजीर में
जकड़ गया है
अपनापन,
अपने भी किसी को
अब अपने नहीं
लगते,
बिगड गया हैं
अपनापन,
लोभ-लालच में
सिमट के
रह गया है
अपनापन,
चेहरों पे कई चेहरे हैं,
पर
कहीं नहीं हैं
अपनापन,
आधुनिक इस युग में
दफ़न होता जा
रहा हैं
अपनापन।