भारत की व्यथा
भारत की व्यथा
बगीचे में मैंने एक बूढ़ी माँ को देखा
वो रो रही थी
मैंने पूछा
माँ आप क्यों
रों रही थी
बूढ़ी माँ ने कहाँ
मेरे पुत्रों ने यहाँ छोड़ दिया
फिर भी ओ रो रही थी
क्या हुआ माँ
मैंने पूछा
हाँ मैंने बच्चों को
सही रूप से
नहीं पाला
उन तीनों को
बचपन से ही मैंने
औरों को कैसे
देखना है मैं नहीं सीखा पायी
अब तीनों भ्रष्टाचार
स्त्री की लोलुपता
जीवन भर आलसी
बनकर अब मुझे
यहाँ छोड़ दिया
माँ फिर भी रो रोकर बैठा
मैं अब पूछा आप का नाम क्या है?
माँ तो बोली मैं हूँ आपकी भारत माता
अब मेरे देश में भ्रष्टाचार
स्त्री, बालिका
हत्याचार बड़ गई
मुझे शर्म आती है
यह देखकर
रो रोकर गायब हुई
मेरे भारत माता
पाश्चात्य सभ्यता को
फैलाकर हम
हमारा वेशभूषा को भूलकर
जीते है
हे युवता अब भी आप
उठिये जागृत होकर बचाइए