कश या काश
कश या काश
ये कश और काश मे जो डंडे का फर्क है
वो डंडा वही सिगरेट है
जो बचपन मे हर लड़के के कोई ना कोई दोस्त ने मज़ाक मे टेस्ट कराई होती है!
कहता था पी कर देख मज़ा आएगा!
दिल का दर्द धुएं के साथ!!
आंखो से बाहर आयेगा!
लड़की नहीं तू जो इससे घबराएगा!!
लगा दम इसका फिर मज़ा आएगा!!!
मन घबराया मेरा मैंने उसे मना किया!
जबर्दस्ती फिर उसने कसम खिलाई!
बोला नहीं मारेगा कश अगर तो!
दोस्ती हमारी समझ तूने ठुकराई!!
मान रख उस दोस्ती का मैंने सिगरेट उठाई!
डरते डरते होंठो के नीचे दबाई!!
मारा कश मैंने और फिर एक खांसी आई!
वो हंसा देख कर बोला तुझसे तो लड़किया भी शर्माई!!
आए आंसू बाहर आंखो से मेरे!
पर उनमे दिल का दर्द नहीं था!!
मन रोया मेरा और बोला!
ये इंसान तेरा दोस्त नहीं था!!
उड़ाया उपहास उसने मेरा पर मैंने एक ना सुनी!
खाई कसम उसी दिन हाँथ कभी सिगरेट ना लगाऊंगा
मगर थी शायद वो मेरी ही गलती!!
मार रहा होता कश तो जिंदगी मे काश नहीं होता!
जी चुका होता जिंदगी अपनी पर काश नहीं होता!!
