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Brahamin Sudhanshu

Abstract

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Brahamin Sudhanshu

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अनचाहा सफर

अनचाहा सफर

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ना कोई मंजिल है

ना कोई ठिकाना

बिना थके बिना रुके

एक अनचाहे सफर तक जाना


हो ख़ुश हो मायूस

हो बादल हो धूप

हर हाल मे पग है आगे बढ़ाना

एक अनचाहे सफर तक जाना


ना कुछ खोने का गम

ना ही कुछ पाने की खुशी

ना ही किसी से कुछ चाहना 

एक अनचाहे सफर तक जाना 


दुनिया की दारी मे

रिश्तो की जिम्मेदारी मे

किसी को हमसफर बनाना

एक अनचाहे सफर तक जाना


रात दिन परे परेशानी मे

गमो की रुसवाई मे

मयखाने मे ख़ुद को घुसाना

एक अनचाहे सफर तक जाना


जीवन कर के अर्थहीन 

मौत के समीप चले आना 

अनचाहे सफर मे घूमते घूमते 

जिंदगी काफी पीछे छोड़ आना 


ले कर झूठी शान झूठी खुशी

दुनिया को बेवकूफ़ बनाना 

ले कर सभी से विदाई अब 

एक अनचाहे सफर तक जाना 



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