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Er Rashid Husain

Abstract Tragedy

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Er Rashid Husain

Abstract Tragedy

हां, में इंसान हूं

हां, में इंसान हूं

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हां मैं इंसान हूं, मैं परेशान हूं।

जिंदगी तुझे देखकर हैरान हूं।।


वो जो कहते हैं जी मुस्कुराया करो।

अपने दिल को न यूं तुम सताया करो।।

कैसे कह दूं कि मन से मैं वीरान हूं।

खुशियों से अभी मैं अनजान हूं।।

हां मैं इंसान हूं.....


रोज़ी रोटी की है हरदम जुस्तजू यहां।

तन पे कपड़ा भी रखना है बेशक सफा।।

घर में बर्तन हैं खाली और मेहमान हैं।

ये सब जानकर भी मैं अनजान हूं।।

हां मैं इंसान हूं.....


उम्र कट रही है ऐसे सिसकते हुए।

बंद मुट्ठी से रेत जैसे फिसलते हुए।।

मेरे मालिक तू ही मेरा निगहबान है।

तेरा बंदा हूं और साहिबे ईमान हूं।।

हां मैं इंसान हूं.....


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