गजल
गजल


दिल से किसी को आज़ भी हम याद क्या करें।
गाफिल हुआ है उससे तो फ़रियाद क्या करें।।
मैं रात भर ये सोच के ही जागता रहा।
अपना भी वक़्त ग़ैर पे बर्बाद क्या करें ।।
मिलना बिछड़ना उससे ही मेरा नसीब था।
जो बंद है क़फ़स में तो आज़ाद क्या करें ।।
मेरी निगाहें ढूंढती है भीड़ में उसे।
क्यों अपने दिल को ओर भी नाशाद क्या करें ।।
कतरा मैं पी गया था याॅं रुसवाई का मगर
उस बेवफ़ा से ग़म की फ़रियाद क्या करें ।।
मैंने छुपाए ऑंख से ऑंसू भी इस लिए।
राशिद के सामने इन्हें आज़ाद क्या करें ।।