आहट को पेहचाना नहीं..
आहट को पेहचाना नहीं..
कुछ उदासी थी छाई
लग रहीं थी कुछ मुरझाई..
हँसी भी थी बस दिखावे की ..
आँखो में थी नमी छिपाई सी
कभी जिसे रहना अकेला
मंजुर न था
ओ ढूंढ एक कोना
तन्हाँईयों को थी चाहने लगी
कुछ उदास से गाने..
नग्मे कुछ पुराने
सुनके अजीब सी मुस्कुराने लगीं
चंद लाईने शायरी की
आखिरी पन्नों पे थी
उतारती..
बस आज आखिरी वो खत मिला..
जिसमें था अलविदा लिखा…अलविदा …अलविदा..।