जब मन भर आता...
जब मन भर आता...
कभी-कभी जब मन भर आता
छोड़ कर सब कुछ दिल तन्हा पाता
कहे जिसे अपनी वही अपनी सुनाता
न कहे कुछ फिर दिल यही जताता
कभी-कभी जब मन भर आता
चंद नगमों को आंसुओं में भीगा जाता
छोड़ कर चले आये उस महफ़िल को
जिसके लिए दिल सदा इबादत करता
कभी-कभी जब मन भर आता
उकेर कर ज़ख़्मों को कागज़ पर
ज़ार- ज़ार चुपके -चुपके दिल कहीं रोता
इस तरह फिर दिल ,ख़ुद को समझाता