श्रृंगार रूप : नंद लाला
श्रृंगार रूप : नंद लाला
देखो मेरा प्यारा नंदलाला
नटवर नागर नंद गोपाला
अपने हाथों से आज श्रृंगार करूँ
रेशमी गोटेदार बागा मैं पहनाऊँ
बंशी भी देखो समीप सज रही
गले में मोती - माला चमक रही
फिर भी यूँ चुप- चुप क्यों हो
कुछ बोलते क्यों नहीं माधव ?
मैं अनजान नासमझ ठहरी
एक बार जरा फिर निहार लूँ
ओहो! मैं तो भूल ही गई
लाला के सिर पर
मोर पंखी मुकुट नहीं पहनाया
अरे ! तो कह देते न ,
अपनों से कैसी नाराज़गी
लो अभी पहना देती हूँ
बलिहारी जाऊँ कान्हा इस रूप पर
अब समझी तेरी मनमोहक सूरत का राज!
