ज्यों जल बिन मछली
ज्यों जल बिन मछली
उसकी समंदर सी आँखों में
न जाने क्यों उमड़ने लगा है
रह- रह कर
फिर से कोई तूफ़ान नया
जो अपने तीव्र वेग से
यूँ ही निरंतर...
भिगो रहा है तन - मन उसका
कहीं चुभता पल - पल
काँच की तरह
कोई एहसास पुराना
तो कहीं तड़प उठती
ज्यों जल बिन मछली
गूँजता जब यादों का तराना।
