गज़ल
गज़ल

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जिंदगी तुझसे शिकायत तो है ।
हां मगर ग़म की इनायत तो है।।
मुझ में बाकी ये रिवायत तो है।
टूटी फूटी है. इबादत तो है ।।
बेच सकता नहीं इमान अपना।
माल ओ दौलत मेरी चाहत तो है।।
है खुशी दूर बहुत दूर मगर।
दिल में पा लेने की चाहत तो है।।
गम ही गम है मेरी दुनिया में मगर ।
जिंदा रहने की इजाजत तो है।।
रहता फूलों में तो मारा जाता।
मेरी कांटो में हिफाजत तो है ।।
डर है नाराज ना हो जाओ कहीं।
वैसे इस दिल को शिकायत तो है।।
बेवफाई भी है मंजूर हमें ।
आपको हमसे मोहब्बत तो है।।
मुझको मंजिल नहीं मिलती राशिद।
पाऊं को चलने की आदत तो है।।