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Er Rashid Husain

Abstract Others

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Er Rashid Husain

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मेरा गांव मेरे एहसास

मेरा गांव मेरे एहसास

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जिंदगी जब भी कशमकश में उलझ जाती है।

मुझे मेरे गांव की बहुत याद आती है।

लहलहाते खेतों को देख मन प्रफुल्लित हो जाता था।

नीम की छांव तले झोंका हवा का आता था।

थकन सब मिट जाती थी रोम-रोम खिल जाता था।

गाँव की मिट्टी की सोंधी खुशबू मुझे लुभाती है।

मुझे मेरे गाँव की बहुत याद आती है।

नदी किनारे बागों मे खेलकूद कर लौट के घर आते थे।

हुक्के की गुड़गुड़ाहट सुन फिर बाहर निकल जाते थे।

गाँव की चौपालों पर बुज़ुर्गों के साये में बचपन बीता है।

उनकी वो नसीहतें जीवन जीना सिखलाती है।

मुझे मेरे गाँव की बहुत याद आती है।

जब भी चाहा दूर बहुत कहीं निकल जाते थे।

तालाब के ठहरे पानी को कंकर मार हिलाते थे।

पानी में उठती छोटी लहरे संगीत कोई सुनाती थी।

बचपन की वो अठखेलियां मुझको बहुत सुहाती है।

मुझे मेरे गाँव की बहुत याद आती है।

बरसात में टपकती फूस की छत अपनी अच्छी लगती थी।

यहां कंक्रीट की ऊंची इमारतों में दम सा घुटता जाता है।

जी चाहता है अब लौट जाऊं अपने संसार की तरफ।

मेरे गाँव की सुनी गलियां मुझे बुलाती हैं।

मुझे मेरे गाँव की बहुत याद आती है।


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