तड़प
तड़प
सजा ये ऐसी बढ़ रही
उम्र मेरी ढल रही
सुन तू भी सुन मेरी
आज जो मैं कह रही।
रहूं उदास घड़ी घड़ी
बेजान सी मैं पड़ी पड़ी
देख तू भी देख सही
कैसे मैं हूं मर रही।।
फ़र्क तुझे न ज़रा सा भी
रूह मेरी तड़प रही
तूं क्या जाने पीड़ा मेरी
मेरे दिल की ना तुझपे पड़ी।
लिखूं मैं अब हर बार की
जीत की ना आस रही
ये मौत अब रजा मेरी
मैं तो बस अब थक गई।

