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V. Aaradhyaa

Tragedy

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V. Aaradhyaa

Tragedy

ये हमारा वो तुम्हारा

ये हमारा वो तुम्हारा

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अक्सर याद आता है वो बीता ज़माना,

कैसे अपनों का था घर में आना जाना !


याद आता है बचपन का घर वो हमारा,

जहाँ सुकूँ था, न था कोई यूँ ग़म का मारा !


रहते थे सब साथ मिलकर एक घर में,

कभी लगता बिस्तर आँगन तो नीचे अंबर में !


सदा बनते सब एक दूसरे का सहारा,

कोई नहीं कहता, ये हमारा वो तुम्हारा !


मगर अब तो कोई पहचानते ही नहीं हैं,

अपनी कमीं उनकी स्वीकारते ही नहीं हैं !


संस्कृति व संस्कार अपने भुलाते जाते हैं,

नये युग के सारे चोंचले अपनाए जाते हैं !


अपनी तहज़ीब अपनी नहीं याद इनको,

छोटे -बड़े का कोई लिहाज़ नहीं इनको !


शर्मो हया का है जैसे निकला है जनाजा,

बेहयाई व बेशर्मी इस दौर का है तक़ाज़ा !


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