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V. Aaradhyaa

Tragedy

4.5  

V. Aaradhyaa

Tragedy

सबको कहाँ मयस्सर ख़ुशियाँ

सबको कहाँ मयस्सर ख़ुशियाँ

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इस क्षणभंगूर जीवन में कभी-कभार ,

अपने अपने दिल के द्वार ज़रा खोलिये !

जब कभी भी ज़रा सा भी मिले मौक़ा ,

सबके संग तनिक हँसिए व खिलखिलाए !


एक हद से ज़्यादा यूँ मौन होकर रहना,

जैसे दुख और अवसाद की ही निशानी है !

सबसे ज़रा खुलकर मिलिए और मिलाइए,

बड़ी ही मुक्तसर सी अपनी ये ज़िंदगानी है !


चलो माना कि,सबको मयस्सर नहीं होते,

चाँद,सूरज से भरा नभ भी आसमानी है !

अब आँचल और आँगन में भर लो खुशियाँ,

उदास व मायूस होना तो एकदम बेमानी है !


जिस खुदा ने बख्शी है हमें नेमतें बेशुमार,

सब के सफ़र की कोई ना कोई कहानी है !

कभी ख़ुशी,ग़म तो कभी आंसू, कभी हंसी,

ज़िन्दगी ढलती धूप-छाँव सी आनी-जानी है !


चंद भाग्यशाली में होता नाम शुमार अपना,

भरी झोली रहे सब उपरवाले की मेहरबानी है !

लम्हे में सिमट सी गई जो हमारी ये ज़िन्दगी,

सब कहेंगे ये तो बड़ी ही खूबसूरत कहानी है !


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