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saher Dhimaan

Abstract Tragedy

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saher Dhimaan

Abstract Tragedy

जिंदगी का सफर।

जिंदगी का सफर।

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कहां जाएं अब, यह रास्ता खत्म होने को है आया ,

ना मनचाही मंजिल मिली,

ना कोई मुकाम हासिल हो पाया ,

वापस लौटना भी आसान कहां ,

घेरे डालता है बीते वक्त का साया ,

कुछ मंजिले मिली थी राह पर ,

और पाने की चाहत में वहां करार कहां आया,

साथियों की कोई कमी नहीं होती अनजाने रास्तों पर , 

पर आखिर तक कहां कोई ठहर है पाया ,

अब तो बस दो कदम की दूरी है,

मौत को गले लगाने के लिए,

आखिरकार है तो यह जिंदगी ही,

जहां हमेशा के लिए कौन जी है पाया।


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