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saher Dhimaan

Abstract Tragedy

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saher Dhimaan

Abstract Tragedy

आंसू।

आंसू।

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एक या दो नहीं, हजारों की गिनती में यह आते है,

एक पल या दो नहीं, सारी रात हमें जगाते हैं,

रोशनी से नहीं, अँधेरे से याराना है इनका,

शायद उजालें में पूछे जाते सवालों से यह डरते हैं,

सुबह होते ही ना जानें कब यह ग़ायब हो जाते हैं,

गालों पर अपने होने के निशान छोड़ जाते हैं,

आंखों को अपने होने का एहसास दिला जाते हैं,

यह 'आंसू 'भी न ढेरों सवालों का एक मसला सा बन जाते हैं।


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