एक शाबाशी
एक शाबाशी
अब थक गया हूं मैं अकेले इन सब से लड़ते-लड़ते,
पता नहीं कब तक एक के बाद एक पड़ाव पार करता रहूंगा
तुम्हारे चेहरे की वह मुस्कान देखने।
फिर से चल दिया हूं कहीं दूर सबसे,
करने अपनी जीत जिंदगी की अगले पड़ाव के।
टूट नहीं गया हूं मैं, बस थक गया हूं अपने को स्थिर करते-करते,
यह दिल विल का धड़कन, किसी से मोहब्बत होना कुछ नहीं है,
बस यही दुआ है खुदा से खुद के लिए, आखिर दम तक लड़ता रहूं
मैं अकेले जब तक बन ना जाता काबिल अपने पिता- माता की शाबाशी के।