तेरी गली
तेरी गली
आज हूं मैं यहां अकेले समुद्र के किनारे जहां तू कभी साथ मेरा
हाथ थाम कर अपनी चंचल नैनों से कत्ल कि थी,
आज बस उठती लहरों को देख वापस आया मैं गलती से फिर तेरी गली।
तेरी गलियों में घूम रहा था मैं अज अकेले
जहां साथ आगे पीछे चलते थे हम दोनों कभी,
फिर कोई शख्स ने पूछा क्या अभी बेटे मुलाकात होती है तुम दोनों की।
मेरी हल्की सी खामोश मुस्कान ने उसकी सारी जवाब दे दी,
और एसे सालों की सारी यादें उसे अपरिचित शख्स के सवाल से ताजा हो गई,
कुछ देर शांत सा वही गली में बैठा सोचा,
क्या गुनहगार था मैं तेरी उदासी कि,
जब कभी तुझे भुलाने को चाहा और ज्यादा याद तु आने लगती,
क्या फिर कभी उस प्यार की गली में हमारी मुलाकात होगी।

