बता क्यों
बता क्यों
एक लड़की थी,
अपनी खिड़की से मुझे चुपके से देखतीं थी,
मैं घर से निकलते ही मेरे पीछे-पीछे बाहर निकल आती थी।
बता क्यों तुझे देख दिल की धड़कन तेज हो जाती थी,
और तेरी हल्की मुस्कान और
तिरछी नजर देख में अपनी होश खो बैठता था,
उसकी प्यार एक पेड़ की छाया जैसी थी,
जब जब उसके करीब जाता घंटे बैठ जाता था,
जी हां उस रोज मुझे उससे प्यार हुआ था।
बता क्यों बरसों पुरानी रिश्ते टूट रहे हैं,
दिल को तकलीफ बहुत ज्यादा हो रही हैं,
बात करना बंद हो चुका है हमारी मगर
तेरी औ प्यारी मुस्कान अभी दर्द देती है,
मुझे तो उस दर्द का बेशक आदत हो गया है।
कौन कहता है मैं तेरी याद से बेखबर हूं,
ना यह तेरी यादें होती,
ना हमारे होठों पर आज सिगरेट होती।