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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

"सबक"

"सबक"

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जिंदगी का हर दिन देता, हमें एक नया सबक

जो वक्त पर जागते, उनके कर्म मिटाते कलंक

जो वक्त पर सीखते, सबक उनके मिटते, कंटक

जो देर करते, उनकी जिंदगी बन जाती, नरक


जो वक्त पर जागे, उन्हें मिलती, मंजिल कड़क

जो सोते, वो खोते है, बेशकीमती जिंदगी कनक

अपनी गलतियों का जो उतारकर फेंकते, ऐनक

उन्हें मिल जाती, अंततः उजले रस्तो की चमक


जिंदगी का हर दिन देता, हमें एक नया सबक

जाग पथिक, नही तो दुनिया निकाल देगी, रड़क

जिन्हें जिंदगी में आ जाती, लोगो की करना परख

वो बन जाता, दुनियादारी की आग में एक कनक


दुनियादारी की ठोकरे मान ले, सफ़लता की जनक

बादाम खा कब आई, अक्ल, ठोकरों ने दिया, सबक

संभल जा, यहां शेर की खाल में घूम रहे, कई, गीदड़

गर पानी है, जिंदगी में कामयाबी किसी भी सूरत


तोड़ दे, वो आईने जिनमें छुपी हुई, तेरी रोनी सूरत

वही व्यक्ति बन पाया है, अपनी जिंदगी मे हीरक

जिसने पहचान ली अपने भीतर की, प्रदीप्त चमक।


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