क्या तुम्हें कुछ याद है?
क्या तुम्हें कुछ याद है?
क्या तुम्हें कुछ याद है
बचपन के किस्से बचपन का भोलापन
बेखबर सी दुनिया, अलहड़ता और दीवानापन।
यदा कदा ऐसी यादें बादलों सी घिर आती हैं
कभी गड़गड़ाती हैं तो कभी आंधी के झोंकों सी
संग उड़ा ले जाती हैं।
लगता है जैसे कल ही की तो बात है
चारों ओर जो नजर घुमाऊं
तो केवल पचपन की खिचखिच
पचपन का अकेलापन पास है।
ढूंढूं भी तो क्या, दिखती ऊपरी कोई कमी नहीं है
फिर भी जाने क्यों एक बेचैनी हरदम बनी हुई है
अपने भोलेपन से मिलने को तरस जाता है अब भी दिल
बड़े बड़े सपनों की महफिल में
मेरे निश्छल बचपन की ही कमी है।
