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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

परहेज

परहेज

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जख्मों की आजमाइश पर वक्त का मरहम क्या लगाया

हवा के थपेड़े पपड़ियाँ जख्मों पर जमाते गए


साया अपना हमदर्द बनकर क्या आया

धारदार नाखून जख्मो को हरा करते गए


कमबख्त तकलीफ साथ नही छोड़ती

बेहयाई से परहेज मगर कहाँ हम करते गए


बदसलूकी को जज्बात बनाकर शराफत क्या ओढ़ ली जरासी

निक्कमो की आबादी में गिनती करते पाये गए


बेहूदी ठंड में पांव क्या भींच लिए जरासे

लोग तो चादर खींचकर रिश्तों में दरार डालते गए


अनदेखी क्या कर दी गलती से 'नालन्दा' 

अब तो हक से बार बार दिल में नश्तर चुभोते गए।


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