हमारे आलोचक बनोगे या दोस्त?
हमारे आलोचक बनोगे या दोस्त?
ग़लतियाँ मेरी गिन ली साहब? कितनी मिलीं? सौ?
और भी हैं बर्खुरदार, ज़रा ग़ौर से तो देखो।
हमें भी आपमें कई दाग़ दिखते हैं
लेकिन हम थोड़ी आपकी तरह वो सब लिखते हैं।
ख़ामियाँ ढूँढ़ने की दिलचस्पी हमें कुछ ख़ास नहीं है
और आपके जितना वक़्त तो भाईजान हमारे पास नहीं है।
इस काम में लग जाते तो हमारा पलड़ा होता भारी
मगर इसे हम ना तो कर्तव्य समझते हैं, ना ज़िम्मेदारी।
ग़लतियाँ तुम्हारी लिखने उंगलियाँ मेरे ये लग जायेंगे
तो ना जाने हम कितने क़िताबों के कवि बन जायेंगे।
तुम्हारी उठनेवाली उंगली मुठ्ठी में जा मिली होती
जो आधी सी भी ज़िंदगी मेरी आपने जी ली होती।
थोड़ी सी मेहनत कर लो, अच्छाईयाँ भी आयेंगी नज़र
कल से आमने-सामने नहीं पास बैठोगे दोस्त बनकर।