आदत बिगाड़ दी है कोरोना ने
आदत बिगाड़ दी है कोरोना ने
कभी उठते थे साढ़े चार बजे, भागते थे तैयार होकर ऑफिस
अब तो इस इंतज़ार में हैं कि कब वो दिन आएगा वापिस
पहले, सवेरे सवेरे नाश्ता बनाने में दस और खाने में पाँच मिनट था लग जाता
आज तो आराम इतना है कि दाँतों में मंजन लगते - लगते दोपहर है हो जाता
आँखें खोलते थे तब चारों तरफ हुआ करता था अंधियारा
अब तो सूरज भी थककर कहता है, "अब तो उठ जा यारा"
एक वक़्त था जब Netflix के एक धारावाहिक को महीनों तक थे रगड़ते
अभी तो Amazon Prime और Hotstar भी हैं हम से झगड़ते
"हमें पहले देख लो, हमें पहले देख लो" कहकर हो रहे हैं ये उदास
कौन इनको बताये कि देखा हुआ भी दोबारा देख सकते हैं इतनी फुरसत है हमारे पास
कितने हुनर सीख लिए हैं अब तुम्हें क्या बताएँ?
उत्तमता में परिवर्तित हो चुकी हैं मेरी सारी ख़ताएँ
पहले दोस्त शिकायत करते थे, "मेरे messages का जवाब क्यों नहीं देता ?"
अब भेजकर देखो, जवाब के साथ विश्लेषण भी दूँगा बेटा।
फिल्में इतनी देख लीं जितनी नहीं देखी थी एक सदी में
किसी की भी कहानी पूछ लो, नाम बदल देना नहीं बता पाया यदि मैं।
फिट रहता था जब चलता था हर रोज़ दस हज़ार क़दम
अभी तो तोंद निकल चुकी है और वो भी भारी-भरकम।
न जाने और कितनी बातों के लिए पड़ेगा रोना
पता नहीं और कितनी आदतें बिगाड़ेगी ये Corona।