COVID-19
COVID-19
बुझ रही है लौ इस जीवन के ऊजाले में,
सिमट रहा है इंसान अंतिम सांसों के निवाले में।
सूनी पड़ रहीं हैं ये गलियां और ये राहें,
बदल रहा है ये मंजर मानो डर की आँखें टिकाए।
इंसान और इंसानियत में ना रहा कोई अन्तर,
बाज़ारों से जरुरत के इल्तज़ाम हो रहे हैं छूमंतर।
मेल मिलाप वाली बस्तियां भी हो रही हैं उजाड़,
मानो बसंत ऋतु में भी लौट आया हो सूखा पतझड़।
ज़ज़्बात भरे इस आलम में गुम हो गयी हैं हर दिशाएं,
सभी के निवारक उपायों को अपनाने से ही बँधी हैं सबकी आशाएं।
दोस्तों, इस कठिन परिस्थिति में भी हौसला ना हारना,
एकता और साहस के संग डटके इसको जड़ से है मिटाना।
