लंबा सफ़र
लंबा सफ़र
एक ख़्वाब पलकों में संजोया था
जी के जिसे जिंदगी को सँजोया था
न जाना वो तो बना शीशे का था
जिसे एक दिन टूट के बिखर जाना था
एक दिल बड़े नाज़ से संभाला था
आया जिस पे साँसों को लुटाना था
न जाना वो हमसफ़र बड़ा बेवफ़ा था
इसे तो अकेले ही तनहाई में रोना था
यूं जिंदगी जीने का सलीका न सीखा था
पराए संग चलने का तरीका न सीखा था
न जाने कैसे रास आएगा ये लंबा सफ़र
कभी टूटे टुकड़ों से घर बनाना न सीखा था।